अहोई अष्टमी व्रत में तारों को अर्घ्य देने का महत्व
अहोई अष्टमी का व्रत 31 अक्टूबर 2018 को रखा जाएगा। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखे जानें वाले व्रत को अहोई अष्टमी कहा जाता है। होई माता का ये व्रत माताएं अपनी संतान के लिए रखती है।
जिस प्रकार करवा चौथ के दिन चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है, उसी प्रकार अहोई अष्टमी के दिन तारों को अर्घ्य दिया जाता है। ये एक इकलौता व्रत है जिसमे तारों को अर्घ्य दिया जाता है। लेकिन क्या आप जानते है कि इस व्रत में तारों को अर्घ्य क्यों दिया जाता है?
अहोई अष्टमी व्रत में तारों को अर्घ्य देने का महत्व
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार बताया जाता है कि आकाश में तारों की संख्या को आज तक कोई गिन नहीं पाया है। इसी को देखते हुए माताएं तारों से ये प्रार्थना करती है कि मेरे कुल में भी इतनी ही संताने हो।
जो मेरे कुल का नाम रोशन करें। और जिस प्रकार तारे आसमान में हमेशा के लिए विद्यमान रहते है, ठीक उसी प्रकार तारों की तरह की कुल की संतानों का नाम भी हमेशा के लिए संसार में विद्यमान रहें। यही वजह है कि माताएं इस दिन तारों को अर्घ्य देती है।
एक अन्य कथा के अनुसार ऐसी मान्यता है कि आकाश के सब तारें होई माता की संतान है। इसलिए उन्हें अर्घ्य दिए बिना इस व्रत को पूरा नहीं माना जाता है। और ना ही अहोई अष्टमी निर्जल व्रत का पुण्य फल माताओं और उनकी संतानों को मिल पाता है।
जिस प्रकार आकाश की शोभा तारों से होती है। उसी प्रकार माताओं की शोभा उनके संतानों से होती है। इसलिए ही इस व्रत में तारों को इतना अधिक महत्व दिया गया है।
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