मां सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं बसंत पंचमी
बसंत के दिनों में पेड़-पौधे भी आपने पुराने पत्ते झड़ा दैते है। वहीं पेड़-पौधे में नए पत्ते आने लगते है। बसंत पंचमी के साथ ही हम सर्दियों के दिन को पीछे छोड़कर बसंत के दिनों में प्रवेश करते हैं। यह दिन सभी तरह के कार्यों के आरंभ के लिए शुभ माना जाता है। इस समय तीर्थों के जल में स्नान का विशेष महत्व है। दूसरा इस समय सूर्य देव उत्तरायण होते हैं। इस दिन कलाकार अपने वाद्य यंत्रों का पूजन करते हैं। कवि, गायक, लेखक, नाटककार सभी इस दिन अपने यंत्रों और सामग्री का पूजन करते हैं। इस दिन कामदेव की पूजा की जाती है। इसी दिन भगवान राम शबरी के आश्रम पहुंचे थे। इस दिन बच्चों को पहला अक्षर लिखना भी सिखाया जाता है। इसे महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला" के जन्मदिवस के रुप में भी जाना जाता है।
इस दिन सुबह-सुबह समस्त कार्यों से निवृत्त होकर मां सरस्वती की आराधना करनी चाहिए। इसके बाद दिन के समय स्नान आदि के बाद भगवान गणेश जी का ध्यान करना चाहिए। स्कंद पुराण के अनुसार सफेद फूल, चन्दन, सफेद वस्त्र धारण करके देवी सरस्वती की पूजा करनी चाहिए।
देवी सरस्वती का मंत्र
सरस्वती जी की पूजा के लिए अष्टाक्षर मूल मंत्र "श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा" है।
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