* आमलकी एकादशी एकादशी व्रत कथा *
एक बार एक नगर था. इस नगर में सभी वर्गों के लोग मिलकर आनन्द पूर्वक रह्ते थें. लोगों का आपस में प्रेम होने के कारण धर्म और आस्था का निवास भी नगर में बना हुआ था. यह नगर चन्द्रवंशी नामक राजा के राज्य के अन्तर्गत आता था. उस राज्य में सभी सुखी थे, उस राज्य में विशेष रुप से श्री विष्णु जी की पूजा होती थी. और एकदशी व्रत करने की प्रथा उस नगर में प्राचीन समय से चली आ रही थी. राजा और प्रजा दोनों मिलकर एकादशी व्रत कुम्भ स्थापना करते थे. कुम्भ स्थापना के बाद धूप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न आदि से पूजा की जाती थी.
एक बार एकादशी व्रत करने के समय सभी जन मंदिर में जागरण कर रहे थे. रात्रि के समय एक शिकारी आया जो भूखा था, और वह लगभग सभी पापों का भागी था. मंदिर में अधिक लोग होने के कारण शिकारी को भोजन चुराने का अवसर न मिल सका और उस शिकारी को वह रात्रि जागरण करते हुए बितानी पडी. प्रात:काल होने पर सब जन अपने घर चले गए. और शिकारी भी अपने घर चला गया. कुछ समय बीतने के बाद शिकारी कि किसी कारणवश मृ्त्यु हो गई.
उस शिकारी ने अनजाने में ही सही क्योकि आमलकी एकादशी व्रत किया था, इस वजह से उसे पुन्य प्राप्त हुआ, और उसका जन्म एक राजा के यहां हुआ. वह बहुत वीर, धार्मिक, सत्यवा दी और विष्णु भक्त था. दान कार्यो में उसकी रुचि थी. एक बार वह शिकार को गया और डाकूओं के चंगुल में फंस गया. डाकू उसे मारने के लिए शस्त्र का प्रहार करने लगे. राजा ने देखा की डाकूओं के प्रहार का उस पर कोई असर नहीं हो रहा है.
और कुछ ऎसा हुआ की डाकूओं के शस्त्र स्वंय डाकूओं पर ही वार करने लगे. उस समय एक शक्ति प्रकट हुई, और उस शक्ति ने सभी डाकूओं को मृ्त्यु लोक पहुंचा दिया. राजा ने पूछा की इस प्रकार मेरी रक्षा करने वाला कौन है.? इसके जवाब में भविष्यवाणी हुई की तेरी रक्षा श्री विष्णु जी कर रहे है. यह कृ्पा आपके आमलकी एकादशी व्रत करने के प्रभावस्वरुप हुई है. इस व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
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