शरद पूर्णिमा 2019 - शुभ मुहूर्त,महत्व,पूजा विधि,मान्यताएं और व्रत कथा
अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह हर साल अक्टूबर के महीने में आती है. इस बार शरद पूर्णिमा 13 अक्टूबर 2019 को है.
शरद पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त
शरद पूर्णिमा तिथि: रविवार, 13 अक्टूबर 2019
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 13 अक्टूबर 2019 की रात 12 बजकर 36 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 14 अक्टूबर की रात 02 बजकर 38 मिनट तक
चंद्रोदय का समय: 13 अक्टूबर 2019 की शाम 05 बजकर 26 मिनट
शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा को 'कोजागर पूर्णिमा' और 'रास पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है. इस व्रत को 'कौमुदी व्रत' भी कहा जाता है. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. कहा जाता है कि जो विवाहित स्त्रियां इसका व्रत करती हैं उन्हें संतान की प्राप्ति होती है. जो माताएं इस व्रत को रखती हैं उनके बच्चे दीर्घायु होते हैं. वहीं, अगर कुंवारी कन्याएं यह व्रत रखें तो उन्हें मनवांछित पति मिलता है. शरद पूर्णिमा का चमकीला चांद और साफ आसमान मॉनसून के पूरी तरह चले जाने का प्रतीक है. मान्यता है कि इस दिन आसमान से अमृत बरसता है. माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा के प्रकाश में औषधिय गुण मौजूद रहते हैं जिनमें कई असाध्य रोगों को दूर करने की शक्ति होती है.
शरद पूर्णिमा की पूजा विधि
- शरद पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें.
- घर के मंदिर में घी का दीपक जलाएं
- इसके बाद ईष्ट देवता की पूजा करें.
- फिर भगवान इंद्र और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है.
- अब धूप-बत्ती से आरती उतारें.
- संध्या के समय लक्ष्मी जी की पूजा करें और आरती उतारें.
- अब चंद्रमा को अर्घ्य देकर प्रसाद चढ़ाएं और आारती करें.
- अब उपवास खोल लें.
- रात 12 बजे के बाद अपने परिजनों में खीर का प्रसाद बांटें.
चंद्रमा को अर्घ्य देते समय इस मंत्र का उच्चारण करें
ॐ चं चंद्रमस्यै नम:
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम ।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।।
ॐ श्रां श्रीं
ॐ चं चंद्रमस्यै नम:
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम ।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।।
ॐ श्रां श्रीं
कुबेर को प्रसन्न करने का मंत्र
धन के देवता कुबेर को भगवान शिव का परम प्रिय सेवक माना जाता है. ऐसे में शरद पूर्णिमा की रात मंत्र साधना से उन्हें प्रसन्न करने का विधान है.
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन धान्याधिपतये
धन धान्य समृद्धिं मे देहि दापय दापय स्वाहा।।
धन के देवता कुबेर को भगवान शिव का परम प्रिय सेवक माना जाता है. ऐसे में शरद पूर्णिमा की रात मंत्र साधना से उन्हें प्रसन्न करने का विधान है.
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन धान्याधिपतये
धन धान्य समृद्धिं मे देहि दापय दापय स्वाहा।।
शरद पूर्णिमा के दिन खीर का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं ये युक्त होकर रात 12 बजे धरती पर अमृत की वर्षा करता है. शरद पूर्णिमा के दिन श्रद्धा भाव से खीर बनाकर चांद की रोशनी में रखी जाती है और फिर उसका प्रसाद वितरण किया जाता है. इस दिन चंद्रोदय के समय आकाश के नीचे खीर बनाकर रखी जाती है. इस खीर को 12 बजे के बाद खाया जाता है.
शरद पूर्णिमा से जुड़ी मान्यताएं
- शरद पूर्णिम को 'कोजागर पूर्णिमा' कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन धन की देवी लक्ष्मी रात के समय आकाश में विचरण करते हुए कहती हैं, 'को जाग्रति'. संस्कृत में को जाग्रति का मतलब है कि 'कौन जगा हुआ है?' कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति शरद पूर्णिमा के दिन रात में जगा होता है मां लक्ष्मी उन्हें उपहार देती हैं.
- श्रीमद्भगवद्गीता के मुताबिक शरद पूर्णिमा के दिन भगवान कृष्ण ने ऐसी बांसुरी बजाई कि उसकी जादुई ध्वनि से सम्मोहित होकर वृंदावन की गोपियां उनकी ओर खिंची चली आईं. ऐसा माना जाता है कि कृष्ण ने उस रात हर गोपी के लिए एक कृष्ण बनाया. पूरी रात कृष्ण गोपियों के साथ नाचते रहे, जिसे 'महारास' कहा जाता है. मान्यता है कि कृष्ण ने अपनी शक्ति के बल पर उस रात को भगवान ब्रह्म की एक रात जितना लंबा कर दिया. ब्रह्मा की एक रात का मतलब मनुष्य की करोड़ों रातों के बराबर होता है.
- माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था. इस वजह से देश के कई हिस्सों में इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जिसे 'कोजागरी लक्ष्मी पूजा' के नाम से जाना जाता है.
- ओडिशा में शरद पूर्णिमा को 'कुमार पूर्णिमा' कहते हैं. इस दिन कुंवारी लड़कियां सुयोग्य वर के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा करती हैं. लड़कियां सुबह उठकर स्नान करने के बाद सूर्य को भोग लगाती हैं और दिन भर व्रत रखती हैं. शाम के समय चंद्रमा की पूजा करने के बाद अपना व्रत खोलती हैं.
शरद पूर्णिमा व्रत कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक साहुकार की दो बेटियां थीं. वैसे तो दोनों बेटियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं, लेकिन छोटी बेटी व्रत अधूरा करती थी. इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी. उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया, ''तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थीं, जिसके कारण तुम्हारी संतानें पैदा होते ही मर जाती हैं. पूर्णिमा का व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतानें जीवित रह सकती हैं.''
उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया. बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ, जो कुछ दिनों बाद ही मर गया. उसने लड़के को एक पीढ़े पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढक दिया. फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया. बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी तो उसका घाघरा बच्चे का छू गया. बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा. तब बड़ी बहन ने कहा, "तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी. मेरे बैठने से यह मर जाता." तब छोटी बहन बोली, "यह तो पहले से मरा हुआ था. तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है. तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है."
उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया.
Post a comment